रविवार, दिसंबर 04, 2011

एक टुकड़ा धूप का

दिवाकर पाण्डेय

जाने क्यों, आज बिस्तर से उठने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन तभी कहीं से एक गोरैया ने आकर भोर का गीत सुनाना शुरू कर दिया। सामने खिड़की की जाली से एक धूप का टुकड़ा मेरे सिरहाने आकर मुझसे अठखेलियां करने लगा, ऐसा लगा जैसे जिंदगी ने दस्तक दी हो। मैं नहा-धोकर नाश्ता करने की तैयारी में था कि अचानक माधव की घबराई-सी आवाज सुनाई दी। कमल जल्दी चलो, गजब हो गया... उसकी सांसें फूल रही थीं।
-आखिर हुआ क्या है? मैं किसी अनहोनी की आशंका से कांप गया।
-सुनील का एक्सीडेंट हो गया है।
- 'क्या!
मैं चीख पड़ा। चम्मच हाथ से छूट गया था। सुनील मेरे बचपन का दोस्त था। स्कूल की या कस्बे की कोई भी शरारत हम दोनों के बिना पूरी नहीं होती थी। कल शाम दोस्तों के साथ मनाई पार्टी का पूरा दृश्य मेरी आंखों के सामने एक चलचित्र की तरह घूम गया। हंसी-मजाक, मस्ती, एक-दूसरे को छेडऩा और बेपरवाही यही सब हमारी पार्टी का हिस्सा थे। जब रात ज्यादा हो गई, तो सभी दोस्तों ने विदा ली। जाते समय मैंने सुनील को कार धीमे चलाने की हिदायत दी थी। वह कार ऐसे चलाता था, जैसे किसी पैरासोनिक विमान में सवार हो। हवा के झोंके से फूलदान गिरने पर मेरी तंद्रा टूट गई। माधव कह रहा था-
तुम्हारे सलाह देने के बावजूद उसने कार तेज चलाई। सड़क का गड्ढा दिखाई नहीं दिया और कार उछल गई। इससे उसका नियंत्रण कार से हट गया और वह पुलिया से जा टकराई। सुनील को हमने कस्बे के हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया है।
माधव के मुंह से यह सुनते ही मैंने झट कपड़े पहने और उसे साथ लेकर हॉस्पिटल की ओर दौड़ पड़ा। अंकल और आंटी वहीं मौजूद थे। आंटी मुझे देखते ही मुझसे लिपटकर रो पड़ीं। बेटा! यह क्या हो गया? वह ठीक तो हो जाएगा न? 'भगवान पर भरोसा रखिए आंटी। सुनील को कुछ नहीं होगा।' दर्द और तड़प की एक लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। मैं आंटी को धीरज बंधाकर डॉक्टर के केबिन की तरफ बढ़ गया।
'आओ कमल, तुम्हारे दोस्त की हालत बहुत नाजुक है। सिर में चोट आने से खून ज्यादा बह गया है। उसे जल्द से जल्द खून न दिया गया तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे। दुर्भाग्य से उसके ग्रुप का खून इस वक्त हमारे ब्लड-बैंक में भी नहीं है।'
खून दिए जाने की बात जानकर सुनील के सभी रिश्तेदारों का चेहरा लटक गया। आंटी की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। दोस्ती का फर्ज मुझे झकझोरने लगा और मैंने अपना खून देने का निर्णय कर लिया। मैंने अपना खून, ग्रुप टेस्ट के लिए लैब में दे दिया।
कुछ देर बाद डॉक्टर ने आकर बताया- कमल तुम्हारा ग्रुप सुनील के ग्रुप से मैच तो कर गया है लेकिन अफसोस हम तुम्हारा खून उसे दे नहीं सकते।
मगर क्यों? मैंने प्रश्नसूचक निगाहों से डॉक्टर को देखा।
...क्योंकि तुम्हें एड्स है। सभी की नजरें मेरी तरफ उठ गईं। उनमें तीर से चुभने वाले सवाल तैर रहे थे। मेरे पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई। लगा जैसे आइने के पाक चेहरे पर किसी ने पत्थर मार दिया हो।
यह नहीं हो सकता डॉक्टर साहब, आप यह टेस्ट दोबारा कराइए।
हमने टेस्ट में कोई गलती नहीं की। उसका नतीजा बिलकुल सही है।
यह कहकर डॉक्टर चला गया। एक-एक कर सब लोग चले गए। केवल रमा खड़ी रही, उसे तो जैसे सांप हीं सूंघ गया था। रमा मेरे ही मोहल्ले में मोड़ वाली गली में रहती थी। हम दोनों साथ-साथ पढ़ते थे। क्लास में मैं हमेशा अव्वल आता था। कस्बे में होने वाली कई गायन प्रतियोगिताओं का भी विजेता रहा था मैं। रमा वालीबॉल की अच्छी खिलाड़ी थी, पेंटिंग और नृत्य में तो उसका कोई सानी ही नहीं था। रमा की स्वच्छंद हंसी, चुलबुलापन और सादगी हमेशा मेरे मन को फूल की खुशबू की तरह महकाती रहती थी। हम दोनों एक-दूसरे को दिल ही दिल में चाहने लगे थे। होली की एक सुबह जब रंग और गुलाल फिजाओं को रंगीन बना रहे थे तब गुलमोहर के तले हमने
अपनी भावनाओं का इजहार एक-दूसरे से कर दिया। धीरे-धीरे चंद्रमा की कलाओं की तरह हमारा प्यार परवान चढऩे लगा। हमने साथ-साथ जीने-मरने की कसमें खाई थीं। लेकिन आज ये एड्स का तूफान हमारे प्यार कि कश्ती को लीलने के लिए न जाने कहां से हमारी जिंदगी में चला आया था।
मेरी स्मृति में दो साल पहले की घटना बिजली की तरह कौंध गई। एक गायन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने मैं शिमला गया था। प्रतियोगिता विजेता को अखिल भारतीय स्तर पर भेजा जाना था इसलिए सभी को अच्छी तरह से प्रशिक्षित किये जाने के उद्देश्य से लगभग एक महीने पहले ही बुला लिया गया था। हम सब लड़के-लड़कियां एक ही बिल्डिंग में ठहरे हुए थे। सुबह होते ही सब अपने-अपने रियाज पर जुट जाते और यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहता। मैं अपने रियाज में इतना डूबा हुआ था कि जान ही नहीं पाया कि एक जोड़ी आंखें मेरा पीछा करती रही हैं। एक शाम जब मैं अभ्यास में मशगूल था तभी एक मधुर आवाज सुनाई दी- बहुत मेहनत कर रहे हैं आप। लगा जैसे किसी ने क्षितिज से पुकारा हो। पीछे मुड़ा तो देखा एक फूलों की डाली मानवीय वेश में खड़ी मुस्कुरा रही थी। इतनी मेहनत किसलिए जनाब? मैं खामोश उसे देखता रहा। लगता है आप इस प्रतियोगिता को जीतकर ही दम लेंगे।
हां, मेरे मुंह से बरबस ही निकल गया।
क्या नाम है आपका?... कमल। और मेरा कोमल (मेरे बिना पूछे ही उसने अपना नाम बता दिया)।
कमल और कोमल दोनों ही 'क' से बने हैं, है न। एक मीठी मुस्कान बिखेरकर वह चली गई। पहली मुलाकात और इतना बेतकल्लुफ अंदाज। खुद को ठगा महसूस कर रहा था मैं। इस परिचय के बाद हल्की नोंक·-झोंक के साथ अक्सर हमारी मुलाकात होने लगी और ये धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई। कोमल की शोखी माहौल को हमेशा खुशनुमा बनाए रखती। शिमला की वादियां उसकी आंखों के इशारों की गुलाम थीं। हवाएं उसके बदन की खुशबू से महकती रहती थीं और घटाएं उसकी जुल्फों से रंग चुराकर झूमती थीं। एक बार जब हम एकसाथ टहल रहे थे तो उसने धीरे से गंभीर स्वर में कहा- कमल, कितना अच्छा हो कि हमारा यह सफर कभी खत्म न हो। मैंने उसे सवाल भरी नजरों से देखा और फिर नजरें हटा दीं। वहां की बर्फ मोतियों से ढक गई थी। कोमल मुझे एक अनबूझ पहेली सी लगती थी। न जानें क्यों मुझे उसकी आंखों में दर्द का एक पहाड़ दिखाई दिया था जो पिघलना चाह रहा हो। आज सब अभ्यास करने में तल्लीन थे। कोमल भी जी-जान से जुटी थी। अचानक वह घुटनों के बल बैठ गई और हांफने लगी। सब उसकी तरफ दौड़ पड़े। जल्दी से उसे अस्पताल में भरती कराया गया। शाम को जब मैं नदी किनारे बैठा कोमल के बारे में सोच रहा था तभी किसी सर्द स्पर्श ने मेरे हाथों को छुआ। देखा तो सामने एक भावविहीन चेहरे के साथ कोमल खड़ी थी। उसने मेरे हाथों को अपने नाजुक हाथों में थाम लिया और चेहरा मेरे कंधे पर टिका दिया। ओठों की पंखुडिय़ों में हल्की-सी जुम्बिस हुई, कमल मैं तुमसे प्यार करती हूं और तुमसे शादी करना चाहती हूं। जानते हो, मुझे ब्लड कैंसर है। मैं अब चंद दिनों की मेहमान हूं। इससे पहले कि सांसे मुझे अलविदा कहें मैं बाकी नई जिंदगी को तुम्हारी बांहों में खुशी के साथ गुजारना चाहती हूं। क्या तुम मरने वाले की यह आखिरी ख्वाहिश पूरी
नहीं करोगे? कहते-कहते उसकी पलकों की कतारों से आंसुओं की कुछ गर्म बूंदें ढलकर मेरी कमीज को भिगोने लगीं और उसी के साथ भीगने लगा था मेरा अपना वजूद। मैं शिमला की सर्दी में भी पसीना-पसीना हो गया था।
मैं अब अपने कमरे में आ गया था लेकिन कोमल की आंखों के आंसू मेरा पीछ छोड़ नहीं रहे थे एक तरफ रमा के लिए मेरा सच्चा प्यार था तो दूसरी तरफ मेरे लिए कोमल का सच्चा प्यार। उसकी पवित्र पुकार मुझे बार-बार अपनी तरफ खींच रही थी। इसी उधेड़बुन में न जाने कब नींद आ गई। सुबह जब मैं खुद से कोमल के सवाल का जवाब पूछ रहा था और मेरे अंदर का इंसान सारे जवाब उसी के हक में दे रहा था, तभी कोमल ने एक इठलाती नदी की तरह मेरे कमरे में प्रवेश किया और मेरे हाथ को थाम एक दिशा की तरफ चल दी। मैं एक अदृश्य-बंधन में बंधा सम्मोहित सा उसके साथ चलता जा रहा था। मेरे कदम जैसे उसका प्रतिरोध करना ही न चाह रहे हों। कुछ देर बाद हमलोग एक मंदिर में खड़े थे। वहां हम दोनों ने शादी की। सब कुछ इस तरह से हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं सका। मेरा सम्मोहन तब टूटा जब कोमल मुझसे लिपटकर रो पड़ी और कहने लगी, कमल ये वक्त ठहर क्यों नहीं जाता? मैं जीना चाहती हूँ। जीना चाहती हूं मैं।
अब मुझे अहसास हुआ कि भगवान ने एक इंसान को खुश करने की कठिन जिम्मेदारी निभाने के लिए मुझे चुना है। पहली बार कोमल को मैंने अपने आगोश में लिया था, मैं उसे मौत की काली छाया और गमों के सायों से बचाना चाहता था। वह रात बहुत तूफानी थी। मैंने निश्चय कर लिया था कि कोमल अब जितने दिन भी जिएगी, मैं उसे गम का अहसास नहीं होने दूंगा। उसका दामन खुशियों से भर दूंगा। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, देखा तो सामने थर-थर कांपती कोमल खड़ी थी। वह मुझसे लिपटकर सुबक पड़ी। बाहर जैसे-जैसे तूफान तेज होता गया हमारी सांसें और धड़कनें एक होती चली गई।
प्रतियोगिता में मात्र पांच दिन शेष थे कि अचानक कोमल की तबियत बिगड़ गई। डॉक्टरों ने भी उसके लिए आशा करना छोड़ दिया था। उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, कमल तुमने मुझे अपना लिया, इसके बाद मेरी कोई ख्वाहिश नहीं रही। दु:ख है तो केवल इस बात का कि मैं तुम्हारे साथ बस कुछ ही कदम साथ चल सकी। कमल! अब मैं नहीं बचूंगी, वादा करो कि तुम यह प्रतियोगिता जरूर जीतोगे। मैंने हां में गर्दन हिला दी। उसकी आंखें डबडबा आईं और फिर धीरे-धीरे हमेशा के लिए बंद हो गई। आंसुओं से शुरू हुई कहानी आंसुओं के साथ खत्म हो गई थी। आज महसूस हो रहा था कि कितना असहाय है इंसान और कितना निष्ठुर है विधाता। कोमल से किया वादा मैंने निभाया और प्रतियोगिता जीतकर वापस आ गया। यहां आने के बाद मैं उदास रहने लगा।
कमल! रमा की कठोर आवाज ने जैसे मुझे ख्वाब से जगा दिया हो। रमा की क्रोध से लाल आंखें मुझे प्रश्नसूचक निगाहों से देख रही थीं।
रमा मेरा विश्वास करो डॉक्टर से जरूर कोई गलती हुई है।
चले जाओ कमल! यहां से चले जाओ। गलती तो मैंने की है। तुमने कमल की खुशबू को मैला कर दिया है।
रमा मैं सच कह रहा हूं, मुझे एड्स नहीं है।
कमल मुझे अकेला छोड़ दो। मैं रोना चाहती हूं, उस गलती पर जो मैंने तुमसे प्यार करके की है।
रमा एकपक्षीय निर्णय लेकर तुम मेरे साथ ज्यादती कर रही हो। तुम्ही सोचो क्या चांद की चांदनी भी मैली हो सकती है?
चांद में तो दाग होता है कमल।
मैं वो चांद नहीं हूँ रमा। मैं शिमला जाकर फिर से टेस्ट कराऊंगा। मुझे विश्वास है कि मुझे एड्स नहीं है। वादा करो मुझसे तुम तब तक मेरा इंतजार करोगी। रमा खामोश निगाहों से मेरी तरफ देखकर वहां से चली गई। मुझे अपनी
जिंदगी, राह के पत्थर की तरह लगने लगी थी। आज एक महीना हो गया था कस्बे से शिमला आए। मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरी रिपोर्ट निगेटिव थी। मुझे एड्स नहीं था। लग रहा था जैसे आसमान मेरी मुट्ठी में समाने वाला हो। अपने अरमान और रिपोर्ट के सारे कागजात समेटकर मैंने कस्बे जाने वाली बस पकड़ ली। मैं जल्द से जल्द रमा तकपहुंचना चाहता था। बस में लगे साउंड से एक गीत धीरे-धीरे मेरे कानों तक पहुंच रहा था...
'लिए सपनों निगाहों में, चला हूं तेरी राहों में जिंदगी आ रहा हूं मैं...
सबसे पहले मैं घर पहुंच·र तरोताजा हुआ और सज-धजकर पूरे जोश के साथ रमा से मिलने के लिए सीढिय़ां उतरकर दरवाजे की तरफ बढ़ा। तभी कालबेल बज उठी, मैंने लपककर दरवाजा खोला। सामने रमा का नौकर खड़ा था। मैं खुशी से पागल हो गया।
करवाय आए बाबू एड्स का ईलाज। मैं फटी निगाहों से उसे देखता रहा।
मैंने पूछा क्या मतलब?
यहां सब लोग कहै रहे कि आप शहर मा एड्स का ईलाज करवाय गए हौ।
मेरा मन आशंकित हो उठा उसने मुझे एक लिफाफा थमाया और कहा 'अइयो जरूर'...
फिर हौले से मुस्कुरा कर चला गया। मैंने जल्दी से लिफाफा खोलकर कार्ड निकाला। यह क्या...मुझे धरती घूमती हुई नजर आने लगी। लगा जैसे किसी ने मुझे स्वर्ग की ऊंचाइयों से गिरा दिया हो। बेहोश होते-होते बचा था मैं।
कार्ड रमा की शादी का था जो कल होने वाली थी। मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और उसी गुलमोहर के नीचे पड़ी लोहे की ठंडी बेंच पर जाकर बैठ गया।
हवाओं की चंचलता, मौसम की खुमारी, पक्षियों की चहचहाहट, बादलों का संगीत, फिजाओं का गुलाबीपन, पत्तों की सरसराहट, सावन का एहसास दिलाती पानी की बूंदों की अंगड़ाइयां, सब कुछ हां, सब कुछ अपने शबाब पर था, पर न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था, कि कोई बेशकीमती हीरा मेरे हाथ में आकर मुठ्ठी में समाने से पहले ही छिटककर दूर चला गया हो। मेरा दोस्त और मेरा प्यार दोनों मुझसे बहुत दूर जा चुके थे। लगा जैसे धूप का वह टुकड़ा मुझसे वाकई में केवल अठखेलियां करने के लिए ही आया था।

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