हरिशंकर परिसाई ने जब साहित्य में निंदा रस की परिभाषा कुछ जुदा तरीके से गढ़ी तो उनके इस आविष्कार पर हर कोई मुदित हुआ। निंदा करने वाला भी और सुनने वाला भी। श्रीलाल शुक्ल ने एक और राग का आविष्कार किया- राग दरबारी। मैं कोई आविष्कार तो नहीं कर रहा हूं (औकात ही नहीं) लेकिन एक आधुनिक क्षेत्र की जानकारी जरूर दे रहा हूं। ये राग और रस से एकदम जुदा है, नाम है ‘मंचीय अलाप’। आप इसे विलंबित में लें या द्रुत में, दोनों प्रभावशाली होते हैं। इसका रियाज करने की बजाए किसी आयोजन में श्रोता/दर्शक बनना बेहतर है। मंच पर अगर शिक्षित सफेदपोशों की उपस्थिति है तब आप खुद को भाग्यशाली समझिए। उनके मुखारबिंद से मंचीय अलाप में प्रशंसा का सोहर ऐसे झरता है जैसे जाड़े की सुबह हरसिंगार के फूल। माना कार्यक्रम तय समय से घंटों देर से शुरू होता है लेकिन मुफ्त में ज्ञान हासिल करने की कीमम समय से चुकानी पड़े तो क्या बुरा है। आप एक बानगी देखिए। यहां देशप्रेम पर आधारित एक नाटक का मंचन होना है। मुख्य अतिथि को आना है और कुछ लोगों ने माइक संभाल रखा है: आदरणीय, माननीय, सम्मानीय, प्रात:स्मरणीय सांध्य-पूजनीय श्री दुबेजी हमारे बीच मौजूद हैं। इनसे मेरे वर्षों पुराने संबंध हैं। मैं यह नहीं जानता कि इनकी तारीफ कैसे करूं, लेकिन करूंगा। सच मानिए मेरे पास शब्द नहीं हैं इनकी प्रशंसा में कहने के लिए। मैं बस यही कहूंगा कि ये स्वनामधन्य महापुरुष हैं। चूंकि मुझे दो शब्द बोलने के लिए कहा गया है इसलिए मैं ज्यादा समय न लेते हुए (ये जनाब भाषाशास्त्र के विशेषज्ञ हैं) बस यही कहूंगा कि दुबेजी जैसे धनी व्यक्तित्व अब दुर्लभ हो गए हैं। इस आयोजन में भी दुबेजी का बहुत योगदान है। मैं जानता हूं कि आप लोग नाटक देखने के लिए अधीर हो रहे हैं। लेकिन उसके पहले मैं दुबेजी से आग्रह करूंगा कि वो भी दो शब्द कहकर हमें कृतार्थ करें। दुबेजी: परम आदरणीय पुरुष श्रेष्ठ, जीवंतता और आत्मीयता की प्रतिमूर्ति श्रीवास्तव साहब मेरे छोटे भाई हैं। उन्होंने अपने संक्षिप्त किंतु सारगर्भित भाषण में हमारे सामान्य ज्ञान में जो वृद्धि की है उसके लिए हम इनके आभारी हैं। उनके भाषण में बहुत ओज है। वे हमेशा सच बोलते हैं। उन्होंने इस मौके पर पधारने का जो कष्ट उठाया है उससे पता चलता है कि वे देशप्रेम में आकंठ डूबे हैं। अभी देशप्रेम पर आधारित जो नाटक आप देखेंगे उसमें उनके जीवन का भी समावेश किया गया है। मैं जानता हूं कि आप लोगों का सब्र परवान चढ़ रहा है पर मुख्य अतिथि के आने में थोड़ा विलंब है। उनके आते ही नाटक शुरू हो जाएग। हम आपको बता दें कि ये वही मंच है जहां से हमारे मुख्य अतिथि ने कई जनकल्याणकारी घोषणाएं की हैं। आप जहां बैठे हैं वो वही जगह है जहां से आपने हौसलाअफजाई करते हुए गगनभेदी तालियां बजाई हैं। ऐसे चतुर्दिक यशप्राप्त मुख्य अतिथि साहब हमारे बीच पधारने ही वाले हैं। वो इतने जनप्रिय हैं कि हर आयोजन में पहुंचने में उन्हें अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा समय लगता है। लीजिए वो हमारे बीच आ चुके हैं। हम उनके सम्मान में एक छोटी सी स्तुति करेंगे और उनसे आग्रह करेंगे कि स्तुति के बाद वे दो शब्द कहकर हमें अपने आशीर्वाद से सिंचित करें। उसके बाद कार्र्यक्रम की अविलंब शुरुआत कर दी जाएगी। बस आप अधीर न होइए, हम जानते हैं कि आपका समय कीमती है!
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