गुरुवार, जून 30, 2011

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया


कितना वक्त गुजर गया
फाग नहीं गाया
बरसात में कागज की नाव नहीं बनाई
छिपकर टॉफी नहीं खाई
बाग में अमरूद नहीं तोड़े
नीम की छांव में गुलेल नहीं बनाई
नुक्कड़ पर छोटू की इतनी चाय पी
मां के हाथों की चीनी नहीं महसूसी
कितना वक्त गुजर गया
कोई मेहमान नहीं आया
मुंडेर पर आकर कागा नहीं बोला
...
अब दोपहर में नींद खुलती है
क्योंकि देर रात महफिल सजती है
मुंडेर पर चिडिय़ा नहीं चहचहाती है
नींद के लिए मां की लोरी की जगह
नींद की
गोलियां ली जाती हैं
...
वक्त गुजर रहा है...
वक्त के साथ मैं भी गुजर रहा हूं
खोखला हो रहा हूं, मर रहा हूं
फिर भी मुस्कुरा रहा हूं।

संपूर्ण


सुनो, मैं कुछ कहना चाहता हूं

छोड़ो, शायद मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा

मैं जानता हूं, कि तुम समझ गई होगी

बुधवार, जून 29, 2011

मौसिकी का गुलदस्ता



शेर--सुखन

तुम चाहकर भी मुझे भुला नहीं सकते,
कुछ भी तुम्हें याद नहीं अब मेरे सिवा। -

जिंदा रहने की निकल आएगी कोई सूरत
अपनी आंखों में कोई ख्वाब सजाकर देखो। -

हम भी जानते हैं मोहब्बत में मिट जाने का हुनर
यूं हमने एक रूठे हुए शख्स को मनाया था कभी। -

बदल डालेंगे हम हर एक चेहरे की रंगत
पत्थर भी पिघलते हैं हमारी नजरों की तपिश से। -

बेरुखी किसी से फिर ऐसी भी कीजिए
कि आंख छलक आए उसकी हर सवाल पे। -

मौत मेरी हो तो तेरी पलकों की छांव में
वरना आसमां भी काफी नहीं मेरे कफन के लिए। -

कौन रोकेगा हमारे हौंसलों की परवाज
शबनम भी बदल दी हमने शोलों के ढेर में। -

हम जलाते है दिया तूफान आने से पहले
हमारी कश्ती को कोई समन्दर डुबो सकता नहीं। -

उनकी आंखों में हैं हजारों समन्दर समाए हुए
हर डूबती कश्ती को मगर किनारा नहीं मिलता। -

उसने देखा था मेरी तरफ कुछ ऐसी नजर से
बुलाया हो किसी ने जैसे मुहब्बत की तरफ से। -१०

तुम्हें हमारी याद आई तो क्या हुआ
हमारा दिल तो जलता है तुम्हारी याद में। -११

बता जिंदगी कैसे दें उसे अपनी बावफाई का पता
खुदा तूने उस शख्स को इतनी वफा क्यों दी। -१२

टूट जाएंगे तमाम अंधेरों के हौंसले
एक ही चिराग काफी है रोशनी के लिए। -१३

मेरे गुलिस्तां में जो लेके आएगा बहार एक दिन
उस शख्स के इंतजार में उम्र गुजार रहा हूं मैं। -१४

धड़कनों का क्या एक मोड़ पर खत्म हो जाएंगी
महसूस कर उसे जो तेरी रूह में बसता है।-१५

तुम्हारी खामोशी


तुम्हारी खामोशी

मैं जानता हूं कि
तुम कुछ कहना चाहती हो
मगर तुम खामोश ही रहना
तुम बोलोगी तो
अधरों को जुम्बिश लेनी होगी
तुम्हारी हसीं खामोशी का नूर
चाँद चुरा लेगा
मैं ठगा-सा रह जाऊंगा
तुम्हें तो मैं मुस्कुराकर
आइसक्रीम देते हुए
दिस इज फॉर यू कहते हुए
चूम लूंगा
मगर चाँद को नहीं बहला पाऊंगा
इसलिए तुम खामोश ही रहना

तुम बोलोगी तो
तुम्हारी खनकती आवाज
एक तरन्नुम बन जाएगी
हवा की सरगोशियों में उलझ जाएगी
तुम्हें तो मैं कान के बूंदे
और ताजमहल की एक रेप्लिका देकर
मोहब्बत की जागीर पा लूंगा
मगर निगोड़ी हवा को
आंख नहीं दिखा पाऊंगा
इसलिए तुम खामोश ही रहना

सच कहूं तो तुम्हारी खामोशी
मुझे भली सी लगती है
आई लव यू, आई एम फॉर यू
आई विल बी फॉर यू फॉरएवर
ये सबकुछ तो बोल दिया है
मैंने भी और तुमने भी
अब तुम्हारी खामोशी में
इजहार भी है, इंकार भी और इकरार भी
इसलिए तुम्हारी खामोशी सुनने के लिए
खुद खामोश हो रहा हूं
तुम भी खामोश ही रहना
मैं तुम्हारी खामोशी का
हर लव्ज सुन रहा हूं
चाँद को आने दो
हवा को आने दो।

जिंदगी बता दे हम किधर जाएं

जिंदगी बता दे हम किधर जाएं
जिंदगी बता दे हम किधर जाएं
टूटी हर आस और दिल घबराए

आंसू की धार आंखों से फूटे

साहिल भी छूटा सागर भी छूटे
रिश्तों की रहगुजर पर हम हैं अकेले

लगता है यूं कि सांसों की डोर टूटे
बड़ी दूर है मंजिल बंजर हुई हैं राहें।
जिंदगी बता दे हम किधर जाएं।

वक्त हम पे अब सितम ढाने लगा

मैं पास आऊं मगर तू दूर जाने लगा
धड़कनों की धूप तो अब उतर जाएगी
मौत की मांग में मेरा लहू चढऩे लगा।
दिल का इकतारा यही गीत गाए।
जिंदगी बता दे हम किधर जाएं।
वो सपनों की बातें वो बांहों के घेरे
वो हाथों की सुर्ख मेहंदी, वो गेसू घनेरे
हमने जो खाई थीं संग जीने की कसमें
उन कसमों से कैसे अंखियों को फेरें
हाय हमने क्यूं ये सपने सजाए।
जिंदगी बता दे हम किधर जाएं।

धरती और आसमां

धरती और आसमां

मैंने पढ़ा था कि

मां धरती और
पिता आसमां होता है
मैं खुश था कि
पूरे आसमां पर मैं
सितारों में टूटकर बिखर जाऊंगा
उसके सीने में

अपनी रोशनी भर दूंगा
एक तमन्ना सूरज बनने की भी उठी थी
क्योंकि मैं आसमां का ताप
अपने सीने में भर लेना चाहता था

मगर चाह आह बन बन गई
आसमां को गुमान हो गया कि
सितारे और सूरज उसे ढक लेंगे
यकायक आसमां थर्राया
मैं धरती पर आ गिरा
मगर अब भी आंखें
आसमां को निहार रही थीं
क्योंकि मैंने पढ़ा था कि
आसमां तो पिता होता है।

मां को कुछ नहीं आता

मां का स्थान ईश्वर से ऊपर होता है। वह जननी है। इसलिए हम उसके ऋणी हैं। यह जीवन और हर सांस उसकी है। मैंने भी अपने तरीके से मां को पुष्पांजलि देने की कोशिश की है.. कविता
मां को कुछ नहीं आता

मेरे घर में गैस नहीं थी,
मां स्टोव पर खाना पकाती थी
उसकी धांय-धांय करती आवाज
को अनसुना कर
बड़े चाव से, जतन से
रोटियों को उलटती-पलटती थी
बाऊ जी कहते तुम्हें खाना पकाना नहीं आता
मां घर में झाड़ू बहोरती थी
घर की बिखरी चीजों को सजाती थी
छोटे से मकान को
घर बनाने के लिए
दिनभर खटती थी।
तिल-तिल मरती थी
फिर भी हंसती थी
बाऊजी कहते
तुम्हें मुस्कुराना नहीं आता।
मां आगे की सोचती थी
वर्तमान सें भविष्य में जाने को अकुलाती थी
स्टोव से निकलकर
अंगीठी और चूल्हे को फांदकर
गैस के सपने देखती थी
मां पढ़ी-लिखी नहीं थी
बाऊ जी ज्ञानवश कहते
तुम्हेंं सपने देखने नहीं आते
आज मां बूढी हो चली है
वक्त की धूल बाऊजी पर भी
चढ़ी है
रोटियों की गोलाइयां पकाते-पकाते
मां सूरज-चांद की गोलाइयां भूलने लगी है
बाऊजी आज भी यही कहते हैं
तुम्हें जीना नहीं आता
मां सोच रही है कि आखिर
इतना सबकुछ उसी को
क्यों नहीं आता।

अब हम उस मकाम पर आ गए हैं

आजकल बात चांद पर घर बनाने और मंगल पर परचम लहराने की हो रही है। स्थानों के बीच दूरी कम हो रही है लेकिन इस सबके इंसा की इंसा से दूरी बढ़ी है। इसी को उकेरा है इस गजल में

अब हम उस मकाम पर गए हैं
हमारी शक्ल से आईने शर्मा गए हैं।

जब तक बजे गीत मेरे, मैं सुनता रहा
उसने छेड़ी तान तो हम उकता गए हैं।

विकास की नदी में नहाना जरूरी है लेकिन
हम अपनी ही खुदी से क्यों सकुचा गए हैं।

बादलों ने शायद इसलिए बरसना छोड़ दिया
वो भी हमारी कारगुजारियों से घबरा गए हैं।

उन्होंने तालियां बजाई वाह किया मेरे रकीब
वो सबको गले लगाके दिलो-जां में समा गए हैं।

मंगलवार, जून 28, 2011

रिश्तों का तापमान

हम अखबारों की कतरनों और समाचार चैनलों की सुर्खियों में अक्सर पढ़ते-देखते हैं कि रिश्तों की गर्माहट कम हो रही है। अलबत्ता वातावरण का तापमान बढ़ रहा है। इसी को रेखांकित कविता

रिश्तों का तापमान


माना कि तापमान
लगातार बढ़ रहा है
पारा ४५ डिग्री सेल्सियस
को छू रहा है
अधिकतम और न्यूनतम
दोनों तापमान औसत से ज्यादा हैं
लेकिन इस बढ़ते तापमान के बीच
रिश्तों का तापमान
शून्य की ओर गतिमान है
संबंधों का सीमेंट
जम नहीं पा रहा है
झूठ की वाष्प इतनी घनी है कि
सच्चाई के बादल बरस नहीं रहे है
वफा के समंदर का
पानी सूखता जा रहा है
रिश्तों की बुनियाद दरक रही है
शीला और मुन्नी
इस कदर हावी हुए हैं
कि बेटा मां और बहन की
भी बलि ले रहा है
अब हर प्रमेय
अर्थशास्त्र के गर्भ से निकलता है
राजनीति की आंच उसे
और पुख्ता करती है
अब तुम ही बताओ
मौसम की इस गति से
सुरम्य पावस ऋतु में
एसिड रेन क्यों हो?