शनिवार, अक्तूबर 05, 2013

जिंदगी के एक मोड़ पे मिल गए यूं आपसे...



जिंदगी के एक मोड़ पे मिल गए यूं आपसे,
 दिल हमारा सजाने लगा मीठे-मीठे से ख्वाब से।

हाय ये शर्मो-हया, सादगी, ये शोखियां
आंखों में तुम्हारी सनम हैं हजारों मस्तियां।
जिस पल देखूं मैं तुम्हें दिखते हो तुम चांद से। 

आपकी आंखों की मय से मौसम शराबी हो गया,
कली फूल बन गई फिजा का रंग गुलाबी हो गया,
चाहते हैं हम तुम्हें, कहते हैं ये आपसे। 

जिंदगी के एक मोड़ पे मिल गए यूं आपसे...

उस शाख पे गुले दिल खिलाऊं कैसे?




उस शाख पे गुले दिल खिलाऊं कैसे? 

रूठा है वो माली, मैं मनाऊं कैसे?

बूंद होती है हर प्यासे की किस्मत में मगर, 
उस दिले दरिया से कोई बूंद चुराऊं कैसे?

कर सके जो रोशन शब-ए-गम मेरा,
वो चरागे मोहब्बत मैं जलाऊं कैसे?

होता नहीं नसीब यहां उंगली का सहारा
दामने यार का सहारा मैं पाऊं कैसे?

हर शह पर तो रहती नहीं उसकी नजर,
दागे दिल नादां उसको दिखाऊं कैसे?

यहां हर सू नजर आती हैं लाशें ही लाशें, 
इन हैवानों को मैं इनसान में बताऊं कैसे?

तेरे लवों की तबस्सुम....




तेरे लवों की तबस्सुम पर नाम लिखा है मेरा,
मैंने आंखों में अपनी चेहरा छुपा रखा है तेरा। 

मेरे वजूद को जनाब इस कदर न ठुकराइए, 
बिखर जाएगा ये मोहब्बत का घरौंदा मेरा।   

तूने मेरे नाम पर कभी ली न हो अंगड़ाई, 
जज्बात के इस मोड़ पर आईना झूठा है तेरा। 

पियूं तो पियूं कैसे इन आंखों के छलकते प्याले, 
न तो साकी है मेरी न है मैखाना मेरा।