रविवार, मई 26, 2024

एक बार फिर चौसर बिछी हुई है

 एक बार फिर चौसर बिछी हुई है,

दांव पर लगी है मां भारती की अस्मिता                                                                                                  

कपट का खंजर लेकर खड़ा है केजरीवाल

एक सिरफिरा अधेड़ पग-पग बो रहा झूठ की झाड़ियां

उसने अपनी तथाकथित मोहब्बत की दुकान में 

सजा रखे हैं नफरत और फूट के शरारे

जाति-धर्म-क्षेत्र-नस्ल की दीवारें गिराने 

की बजाए चौड़ी कर रहा खाइयां और दरारें

अपनी साजिशों के लाक्षगृह में वह 

फूंक देना चाहता है देश का गौरव


रामभक्तों पर गोलियां चलाने वाले

कर रहे हैं राम के आमंत्रण का इंतजार

अब तो बस वोट की ताकत ही बताएगी 

कि इनको क्या कहें - मूढ़, मतिहीन या गंवार


एक मनस्वी, एक तेजस्वी, एक यश्वस्वी, एक तपस्वी 

गंगापुत्र जयचंदों के हर सवाल सहता है

मस्तक पर भस्म लगा, जन-जन में राम बसा, 

आकंठ गरल पी पवन-सा अविरल बहता है।

अंतहीन श्रम, गतिशील क्रम, न सीएल, न पीएल, न ईएल,

न टीएल न कोई वीकली लगाता है, 

पुरी दुनिया ने लोहा माना, भारत को विश्च गुरु बनाने

140 करोड़ हाथ थाम हर एवरेस्ट चढ़ता जाता है


हे! आर्यपुत्रों, हे! प्रताप-शिवाजी की संतानों

क्यों सोया है पुरुषार्थ तुम्हारा

भगत, अब्दुल हमीद, मिसाइल मैन के स्वप्न अधूरे, 

वर्तमान के प्रयासों पर टिका है उत्तरार्ध तुम्हारा


वक्त न तुमको माफ करेगा, पीढियां तुम्हारे आलस-बहानों पर पछताएंगी

जरासंध, दु:शासन, शकुनी, शिशुपाल, मारिचि, शूपर्णखा की टोली छल कर जाएगी।  


उठो! पांचजन्य सा नाद करो तुम, हर चक्रव्यूह में अभिमन्यु बन जाओ

गर्मी, धूप, भीड़, छुट्‌टी, बहाने तज, लोकतंत्र की धानी चूनर आसमान में लहराओ। 


- दिवाकर पाण्डेय


 

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