यह ब्लॉग महज थोथे विचार थोपने के लिए कोई जुगाली नहीं है। ये कुछ अनुभूतिया हैं जो मैंने विभिन्न पलों में महसूस कीं। इन्ही को मैंने अलग-अलग विधाओं में व्यक्त किया है। इसका नाम पनघट इसलिए रखा ताकि पनघट की विविधता पूरे सौन्दर्य के साथ आपमें समाहित हो सके।
बुधवार, जून 29, 2011
तुम्हारी खामोशी
तुम्हारी खामोशी
मैं जानता हूं कि
तुम कुछ कहना चाहती हो
मगर तुम खामोश ही रहना
तुम बोलोगी तो
अधरों को जुम्बिश लेनी होगी
तुम्हारी हसीं खामोशी का नूर
चाँद चुरा लेगा
मैं ठगा-सा रह जाऊंगा
तुम्हें तो मैं मुस्कुराकर
आइसक्रीम देते हुए
दिस इज फॉर यू कहते हुए
चूम लूंगा
मगर चाँद को नहीं बहला पाऊंगा
इसलिए तुम खामोश ही रहना
तुम बोलोगी तो
तुम्हारी खनकती आवाज
एक तरन्नुम बन जाएगी
हवा की सरगोशियों में उलझ जाएगी
तुम्हें तो मैं कान के बूंदे
और ताजमहल की एक रेप्लिका देकर
मोहब्बत की जागीर पा लूंगा
मगर निगोड़ी हवा को
आंख नहीं दिखा पाऊंगा
इसलिए तुम खामोश ही रहना
सच कहूं तो तुम्हारी खामोशी
मुझे भली सी लगती है
आई लव यू, आई एम फॉर यू
आई विल बी फॉर यू फॉरएवर
ये सबकुछ तो बोल दिया है
मैंने भी और तुमने भी
अब तुम्हारी खामोशी में
इजहार भी है, इंकार भी और इकरार भी
इसलिए तुम्हारी खामोशी सुनने के लिए
खुद खामोश हो रहा हूं
तुम भी खामोश ही रहना
मैं तुम्हारी खामोशी का
हर लव्ज सुन रहा हूं
चाँद को आने दो
हवा को आने दो।
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