रविवार, सितंबर 01, 2013

तेरे दिल की बात

मैं क्‍या करूं कि मेरे दिल पे आ गई है,
पगली सी एक बदली सेहरा पे छा गई है।

छलके है उनकी आंखों से मय के हजार प्‍याले 
मेरा कोई कुसूर नहीं, साकी पिला गई है।

अब अपने दामन को छुड़ाइये न हमसे,
    मेरी हसरतों के चराग आंधी जला गई है।

                                                           मांग लिया है मैंने रब से दुआ में तुमको,
                                                         तेरे दिल की बात मेरी जुंबा पे आ गई है।

एक शाम जब मैं उदास था

एक शाम जब मैं उदास था
मैं रो रहा था
लेकिन तब मेरे आश्‍चर्य की कोई 
सीमा न रही
जब मैंने देखा, मेरे आंसू 
मुझ पर ही हंस रहे हैं।
मैं रो रहा था 
और आंसू हंस रहे थे।
कैसी विंडबना है ये 
जो जिसके लिए रोता है
वही उस पर हंसता है।
मैं यही झुठलाने के लिए
रो रहा था।
परंतु असफल रहा।
मैं नहीं जान पाता कि मैं हंसने 
के लिए रोता हूं 
या रोने के लिए हंसता हूं 
मगर अब मैं
हंसने का अभ्‍यास करूंगा
क्‍योंकि मैं जान गया हूं कि 
मेरे लिए कोई नहीं रोएगा।


नदी और रिश्‍ते

मैं कहता हूं कि
आखिर क्‍यों
हम नदी के किनारों
की तरह रहते हैं
किनारों के बीच
बहता पानी बनो
क्‍योंकि, रवानी
उसी में होती है
जिंदगानी
उसी में होती है।