ये कैसी है जमीं, और ये कैसा है आसमां।
15 अगस्त पूछ रहा मेरा कहां है आशियां।
मैं तो तलाश रहा था मोहब्बत का एक शजर,
उफ! हर दरख्त पर पसरी नफरत की बेल यहां।
इतना क्यूं भड़कते हैं सब मजबह के नाम पर
इतनी ही आग है तो सरहद का रुख करो मियां।
सोचा न था इस कदर उजड़ जाएगा आंगन मेरा,
मैं जज्बात तलाशता फिर रहा, यहां-वहां, जहां-तहां।
मशालें तो रोशनी के लिए थीं, तुमने आग क्यूं लगाई
इस आग में सब जल जाएगा तेरा, यह जहां, वह जहां।
दीन, ईमान, इंसा, मोहब्बत क्या सब किताबी फसाने हैं?
वक्त है संभल जाओ, सबको मयस्सर नहीं होता वक्त यहां।
- दिवाकर पाण्डेय
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