बारिश के इस मौसम में हर किसी का मन-मयूर नाच
उठता है। प्रकृति के इस आनंद उत्सव में हरियाली की चादर भी है और फुहारों की छुअन
भी। ऐसे में किसी गीत का जन्म होना स्वाभाविक है...
आज घिर आई है बदरिया इश्क की मेरी छत पर
बरसी हैं लडि़यां पैगाम-ए-महबूब की मेरी छत पर।
बाद-ए-सबा ने झूम के महका दिया दिल का चमन,
उफ!उन आंखों की हया का इंद्रधनुष छा मेरी छत पर।
तड़-तड़ बिजली चमक रही, पवन मचा रहा शोर है,
उनकी मुस्कुराहट कर रही अठखेलियां मेरी छत पर।
हमको हिफ्ज़ हैं लव्ज-ए-खामोशियां आलाजर्फ की
लरजकर ठिठकने की अदा जवां हुई है मेरी छत पर।
हवा के बोसे कह रहे उन्होंने शब भर रची हथेलियां
ऐ!रिमझिम थम न जाना, जमकर बरस मेरी छत पर।
[हिफ्ज़- (याद, कंठस्थ) आलाजर्फ- (बड़े लोग)]
shaandaar
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